देहरादून,15 अप्रैल = उत्तराखंड के वन प्रदेश को ही नहीं पूरे देश को प्राण वायु आपूर्ति करते हैं। यही कारण है कि लंबे अरसे से प्राण वायु के एवज में केन्द्र से अतिरिक्त सहायता मांगने का कार्य किया गया था। पूर्ववर्ती निशंक सरकार ने यह कार्य प्रारंभ किया था, लेकिन कांग्रेस की सरकार ने ऐसा नहीं होने दिया।
अब प्रदेश और केन्द्र दोनों में भाजपा की सरकार है संभवत: इस मामले पर प्रगति हो पर केन्द्र पहले से ही उत्तराखंड की हरियाली बचाए रखने के लिए लगातार प्रयत्नशील है। सच तो यह है कि उत्तराखंड में लगातार वनों के धधकने का काम चलता रहा है।
चार महीने जंगल की आग के लिए महत्वपूर्ण माने जाते हैं। जिसके कारण 71 प्रतिशत वन भूभाग वाले उत्तराखंड के लिए यह चार महीनें बड़े भारी पड़ते हैं।
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एक मोटे आंकलन के अनुसार हर साल लगभग 22 सौ हेक्टेयर जंगल आग की चपेट में आते हैं। हालांकि राज्य सरकार इस बाबत प्रयत्नशील हैं,लेकिन अग्रिकांड पहले की तुलना में ज्यादा ही हो रही हैं। पिछले लगभग डेढ़ महीनें में 237 हेक्टेयर से अधिक का जंगल जलकर खाक कर रही है। इसका कारण आग की भयावहता है।
इस साल फरवरी 09 घटनाओं में 8.90 हेक्टेयर प्रभावित हुआ,जबकि मार्च में यही बढ़कर 76.10 हेक्टेयर हो गया था। अप्रैल के मध्य तक 152.75 हेक्टेयर जंगल जलकर खाक हो चुका है। लगभग 38 हजार वर्ग किलोमीटर में फैले जंगल में से 25 हजार 08 सौ 63 हेक्टेयर वन विभाग के पास है। शेष जंगल स्थानीय निकायों के जिम्मे हैं।
पिछली बार तो इतनी विकराल आग लगी थी कि वायुसेना तक की मदद लेनी पड़ी,लेकिन बजट की कमी झेल रहे वन विभाग को केन्द्र सरकार ने बड़ी राहत दी है। केंद्र सरकार ने प्रदेश को 650 करोड़ रुपये की राशि वन संरक्षण के लिए दी है।
इसके लिए अग्निकांड को रोकने की योजना के साथ-साथ मानव वन्यजीव संघर्ष तथा वर्षों से पड़े वन पंचायतों के योजनाओं को भी आधार दिया जाएगा।
उत्तराखंड वानिकी की विविधता के कारण पूरे विश्व में जाना जाता है यही कारण है कि केन्द्र सरकार इस वन्य क्षेत्र को कम नहीं होने देना चाहती। इसका लाभ केवल भारत को ही नहीं पूरे विश्व को मिल सकता हैं।