अब मुंबई तय करेगी देश की भावी राजनीति.
Maharashtra. मुंबई, 25 फरवरी (हि.स.)। देश की आर्थिक राजधानी व महाराष्ट्र की राजधानी मुंबई, उप राजधानी नागपुर, धार्मिक राजधानी नासिक व सांस्कृतिक राजधानी पुणे स्थानीय स्वराज संस्थाओं के चुनाव के बाद कमलमय हो गया है। भारतीय जनता पार्टी ने ऐतिहासिक प्रदर्शन करते हुए इन शहरों के साथ ही राज्य के अधिकांश हिस्से में कमल खिला दिया है। भाजपा इस आशातीत सफलता को उत्तरप्रदेश, उत्तराखंड व मणिपुर चुनाव के ट्रेलर के रूप में देख रही है। सच भी है, मुंबई से शुरू हुई क्रांति का असर देशव्यापी होता है। भाजपा भी इसी तर्ज पर इस विजय रथ पर सवार उत्तरप्रदेश सहित अन्य राज्यों में अपनी विजय पताका फहराने का प्रयास करने वाली है।
इसका कारण यह है कि मुंबई देश की राजनीति में अव्वल स्थान रखता है। अंग्रेजों को देश से भगाने की शुरुआत इसी शहर से हुई थी और 1942 में अंग्रेजो भारत छोड़ो का भी बीजारोपण इसी शहर में हुआ था। इस क्रांति का पूरे देश में विस्तार हुआ और अंग्रेजों को देश छोड़ कर जाना पड़ा। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के पारदर्शक व भ्रष्टाचार मुक्त सरकार के मूलमंत्र पर मुंबई महानगर में भाजपा की अलख पूरे देश को भ्रष्टाचारियों से मुक्त करने में सफल होगी, इस तरह का विश्वास आम जनता के मन में जागृत हो गया है।
यहां इस बात का उल्लेख करना जरूरी है कि जिस तरह 1988 में कांग्रेस पार्टी की स्थापना इसी मुंबई की धरती पर हुई थी, उसी तरह 1952 में भारतीय जनसंघ व उसके बाद 1980 में भारतीय जनता पार्टी की भी स्थापना इसी मुंबई में की गई थी। इतने दिनों के संघर्ष के बाद भाजपा को मुंबई में ऐतिहासिक सफलता मिली है। वर्ष 2014 में हुये लोकसभा चुनाव में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने यहां चुनाव प्रचार करते हुए कांग्रेसमुक्त का नारा दिया था, जिसे महाराष्ट्र के मुख्यमंत्री देवेंद्र फडणवीस ने सच कर दिखाया है। भ्रष्टाचार के कीचड़ में लथपथ कांग्रेस व राष्ट्रवादी कांग्रेस से महाराष्ट्र को मुक्त करने का काम तो प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने ही लोकसभा चुनाव में कर दिया था।
इस सिलसिले को विधानसभा चुनाव व स्थानीय निकाय चुनाव में मुख्यमंत्री देवेंद्र फडणवीस, महाराष्ट्र प्रदेश अध्यक्ष राव साहेब दानवे व मुंबई भाजपा अध्यक्ष आशीष शेलार ने जारी रखा है। हाल ही में संपन्न राज्य के मुंबई सहित अन्य महानगरपालिका चुनाव, जिला परिषद व नगरपंचायत चुनाव में भी भ्रष्टाचारी जनप्रतिनिधियों का सफाया हुआ है और कांग्रेस मुक्त मुंबई व कांग्रेस मुक्त महाराष्ट्र बनाने की दिशा में भाजपा आगे बढ़ रही है। मुंबई सहित महाराष्ट्र में भाजपा की ताकत पहले से हैं।
इससे पहले भाजपा ने हिंदूत्व के मुद्दे पर शिवसेना से चुनावी गठबंधन किया था। इसका कारण दिवंगत शिवसेना प्रमुख बालासाहेब ठाकरे व दिवंगत भाजपा नेता प्रमोद महाजन व गोपीनाथ मुंडे के बीच बेहतर आपसी समझदारी थी। उस समय दोनों पक्ष अपनी ताकत के हिसाब से सीटों को बांटकर लड़ लेते थे, कहीं इस बारे में शोर शराबा नहीं हो पाता था। लोकसभा व विधानसभा चुनाव में भाजपा अधिक सीटों पर चुनाव लड़ती थी और महानगर पालिका में शिवसेना अधिक सीटों पर चुनाव लड़ती थी।
शिवसेना प्रमुख मुंबई व ठाणे से अधिक प्रेम होने की वजह से वह इन दोनों शहरों पर अपना विशेष ध्यान केंद्रित किया करते थे, जबकि भाजपा की नजर विधानसभा व लोकसभा में पार्टी के विस्तार की रहती थी। अगर कभी बात बिगड़ती भी थी तो दिवंगत बालासाहेब ठाकरे व दिवंगत प्रमोद महाजन की बैठक के बाद कुछ कहने के लिए शेष ही नहीं बचता था। इन दोनों नेताओं के निधन के बाद दोनों दलों के नेतृत्व में बदलाव हुआ और फिर जरूरत के हिसाब से नई नीतियों के तहत चुनाव लड़ा जाना तय किया गया है। हालांकि 2014 में संपन्न लोकसभा चुनाव के बाद ही दोनों दलों में समझौता न होने की वजह से विधानसभा चुनाव दोनों दलों ने अलग-अलग लड़ा था और भाजपा को 123 सीटें हासिल हुई थी।
बाद में कल्याण-डोंबिवली महानगर पालिका चुनाव भी दोनों दल आमने-सामने लड़े थे, जहां दोनों दलों को सफलता मिली थी। इसलिए भाजपा शिवसेना दोनों दलों में मुंबई महानगर पालिका चुनाव के लिए सीटों के तालमेल को लेकर मन में कुछ और बाहर कुछ वाली स्थिति थी। लेकिन चुनाव अलग-अलग लड़ना है, यह कहने की पहल कौन करें। इसे लेकर दोनों दलों में बेचैनी बनी हुई थी।
मुंबई महानगर पालिका की अधिसूचना जारी होने के बाद दोनों दलों के नेताओं ने प्राथमिक बैठक भी की। सीटों की मांग की चिठ्ठी का आदान-प्रदान भी हुआ, लेकिन सब कुछ महज औपचारिकता ही थी । आखिर जिसका इंतजार दोनों दलों को था, उसकी घोषणा शिवसेना अध्यक्ष उद्धव ठाकरे ने 26 जनवरी को गोरेगांव में आयोजित सभा में कर ही डाला। उन्होंने साफ कहा कि शिवसेना अकेले चुनाव लड़ेगी। चुनाव प्रचार के दौरान दोनों दलों ने एक-दूसरे पर जमकर कीचड़ उछाले। यहां तक स्थिति पहुंच गई कि शिवसेना ने अपने मंत्रियों का इस्तीफा तक दिए जाने की तैयारी दिखला दी। चुनाव के कुछ दिन पहले शिवसेना ने कहा कि यह सरकार नोटिस पीरियड में चल रही है।
भाजपा ने भी मुंबई में अकेले चुनाव की तैयारी पहले से ही कर रखी थी। मुंबई भाजपा अध्यक्ष आशीष शेलार, मंत्री विनोद तावड़े, प्रकाश मेहता, विद्या जयप्रकाश ठाकुर, राज पुरोहित व मंगल प्रभात लोढ़ा आदि नेता चुनाव प्रचार में जुट गए जिससे भाजपा को मुंबई चुनाव में आशातीत सफलता मिली। मुंबई महानगर पालिका चुनाव में शिवसेना को 84 सीटें मिलीं जबकि भाजपा को पहली बार अकेले चुनाव लड़ने पर 82 सीटें हासिल हुई हैं। चुनाव में कांग्रेस पार्टी को 31 सीटें, राकांपा को 09, मनसे को 07, समाजवादी पार्टी को 06, एमआईएम को 03, अभासे को 01 व 04 सीटें निर्दलीय को मिली हैं।
इस चुनाव में भाजपा छह सीटें दो अंकों के अंतर से हारी है। इस चुनाव में मनसे अध्यक्ष राज ठाकरे को भी नुकसान उठाना पड़ा है। मनसे को पिछले चुनाव में 28 सीटें मिली थी, जो इस बार घटकर 07 तक सिमट गई हैं। भाजपा ने यहां अपना महापौर बनाने का प्रयास जारी कर दिया है। हालांकि शिवसेना ने भी यहां अपना महापौर बनाने का प्रयास जारी रखा है। इस मामले में केंद्रीय मंत्री नितीन गडकरी की भूमिका निर्णायक हो सकती है। गडकरी ने दोनों दलों में व्याप्त कटुता को समाप्त करने व आपस में मिलकर महापौर बनाने की अपील की है। गडकरी ने शिवसेना को सुनाते हुये कहा है कि गठबंधन का पालन दोनों के लिये जरूरी है। साथ रहते हुए सत्ता का स्वाद चखना व बाद में प्रधानमंत्री, पार्टी के राष्ट्रीय अध्यक्ष तथा पार्टी नेताओं के बारे में अनर्गल बयानबाजी करने मित्रता नहीं की जा सकती है।
इस समय मुंबई में सत्ता गठन करने के लिए दोनों दल किस तरह की नीतियों का सहारा लेते हैं, उसके हिसाब से देश की आगामी राजनीतिक समीकरण तय हो सकते हैं। जैसा कि नितीन गडकरी प्रयास कर रहे हैं, अगर भाजपा व शिवसेना दोनों मिलकर मुंबई महानगर पालिका में सत्ता गठित करते हैं तो इसका दूरगामी परिणाम न के बराबर ही होगा। यह सब इससे पहले से चल रही राजनीति के तहत ही होगा और शिवसेना केंद्र व राज्य की सत्ता में पहले जैसे ही भागीदार बनी रहेगी। लेकिन अगर शिवसेना अपना महापौर बनाने के लिए कांग्रेस के 31 नगरसेवकों का समर्थन लेती है तो पहले से तय राजनीतिक समीकरण प्रभावित हो सकता है।
कांग्रेस के नगरसेवकों का समर्थन लेने के बाद शिवसेना अगर राज्य की सत्ता से अपना समर्थन वापस लेती है तो राज्य की फडणवीस सरकार प्रभावित हुए बिना नहीं रह सकेगी। हालांकि इस समय विधानसभा में जादुई आंकड़े 144 के कुछ ही दूरी पर भाजपा 123 खुद के विधायकों व 10 निर्दलीय विधायकों के साथ है। इन स्थिति में भाजपा को न चाहते हुए भी राकांपा का सहारा लेना पड़ सकता है। शिवसेना के सांसदों की मोदी सरकार से समर्थन वापसी का केंद्र सरकार के स्वास्थ्य पर कोई असर नहीं पड़ने वाला है। लेकिन अगर शिवसेना व भाजपा के बीच सामंजस्य नहीं हो सका तो हाशिए पर पहुंच चुकी कांग्रेस व राकांपा को जीवनदान जरुर मिल सकता है।
मुंबई महानगर पालिका चुनाव से पहले कांग्रेस पार्टी, राष्ट्रवादी कांग्रेस पार्टी व समाजवादी कांग्रेस पार्टी के बीच चुनाव पूर्व गठबंधन की बात हो रही थी। चर्चा शुरू होने से पहले ही राकांपा मुंबई अध्यक्ष सचिन अहीर व प्रदेश प्रवक्ता नवाब मलिक की ओर से कुछ सीटों पर उम्मीदवारों की घोषणा कर दी गई। इसी बात को आधार बनाते हुए मुंबई प्रदेश कांग्रेस अध्यक्ष संजय निरुपम ने मुंबई में हो रहे महानगर पालिका चुनाव में अकेले दम पर चुनाव लड़ने की घोषणा कर दी। हालांकि संजय निरुपम की इस घोषणा के बाद राकांपा की ओर से गठबंधन की बात की जाने लगी।
बाद में कांग्रेस पार्टी के वरिष्ठ नेता गुरुदास कामत व नारायण राणे ने भी निरुपम का विरोध किया और चुनाव प्रचार न करने की घोषणा की दी। लेकिन बाद में पार्टी हाईकमान के बीच-बचाव के बाद इन नेताओं ने अपना विरोध वापस ले लिया। हालांकि पार्टी के कई बड़े नेता जैसे नसीम खान व कृपाशंकर सिंह आदि ने अपने आपको चुनाव से दूर ही रखना पसंद किया। इतना ही नहीं इन बड़े नेताओं ने अपनी पहुंच का इस्तेमाल करते हुए अन्य दलों में अपने समर्थकों को टिकट दिलाने का भी बंदोबस्त किया। चुनाव परिणाम के बाद इन सबसे परेशान हो उठे संजय निरुपम ने अपने पद से इस्तीफा पार्टी हाईकमान को सौंप दिया है, जिसपर अब तक निर्णय नहीं किया जा सका है। इस तरह संजय निरुपम के नेतृत्व में चुनाव लड़ने वाले नगरसेवक अगर भाजपा व शिवसेना में समझौता नहीं हो पाता है तो निर्णायक भूमिका अदा कर सकते हैं। यदि दोनों दलों में गडकरी की इच्छा के अनुसार समझौता हो जाता है तो निश्चित ही कांग्रेस व राकांपा मुक्त सत्ता का गठन मुंबई महानगर पालिका में होगा।
ठाणे महानगरपालिका में शिवसेना अपने बल पर सत्ता स्थापित करने जा रही है। नासिक में भाजपा को स्पष्ट बहुमत मिला है और यहां भाजपा की सत्ता स्थापित हो रही है। नागपुर जहां आरएसएस का केंद्रीय कार्यालय है, यहां महानगर पालिका में भाजपा को बहुमत से अधिक सीटें मिली हैं। इसलिए यहां भी भाजपा का महापौर बनना तय है। इसी तरह पुणे व पिंपरी -चिंचवड़ की सत्ता भाजपा ने शरद पवार की राकांपा से छीन ली है और यहां भी भाजपा का महापौर बनने वाला है। अमरावती, आकोला महानगर पालिका में भी इस बार भाजपा का महापौर बनने जा रहा है। पिछले छह दशक जारी सोलापुर में कांग्रेस की सत्ता को हटाकर भाजपा ने इस बार इतिहास रच दिया है। भारतीय जनता पार्टी इस चुनाव के बाद सोलापुर महानगर पालिका में भी अपना महापौर बनाने जा रही है। इस महानगर पालिका पर पूर्व केंद्रीय मंत्री सुशील कुमार व उनकी विधायक बेटी का वर्चस्व रहा है।
भाजपा ने जहां शहरीय क्षेत्रों में अपनी विजय पताका फहराई है, वहीं छोटे शहरों व ग्रामीण स्तर भी भाजपा का कमल खिलने में कामयाब रहा है। जिला परिषद की अधिकांश सीटों पर भाजपा के नगरसेवक जीते हैं, जिससे भाजपा के नगरसेवकों की संख्या में वृद्धि हुई है। भाजपा को बीड़ जिले में स्थित परली में सफलता नहीं मिल सकी, जिससे ग्राम विकास मंत्री पंकजा मुंडे को बहुत दुख हुआ। परली में दिवंगत नेता गोपीनाथ मुंडे का विकास को काम तो है ही, सांसद के रूप में उनकी बेटी प्रीतम मुंडे व ग्राम विकास मंत्री के रूप में पंकजा मुंडे ने भी जोरदार काम किया है। लेकिन इस चुनाव में परली की जनता ने राकांपा नेता धनंजय मुंडे का साथ देते हुए परली की जिला परिषद राकांपा के हवाले कर दिया जिससे पंकजा मुंडे ने मंत्री पद का इस्तीफे की घोषणा तक कर दिया था, लेकिन मुख्यमंत्री ने उन्हें इन चुनाव नतीजों को खिलाड़ी प्रवृत्ति से लेने व इस्तीफा न देने की अपील की है।
महाराष्ट्र में भाजपा की जीत के मुख्य योद्धा मुख्यमंत्री देवेंद्र फडणवीस रहे हैं, लेकिन उन्होंने इस विजय का श्रेय प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को ही दिया है। मुख्यमंत्री का कहना है कि मुंबई सहित राज्य की जनता ने प्रधानमंत्री के स्वच्छ पारदर्शी व भ्रष्टाचार मुक्त कामकाज को देखते हुए भाजपा को मतदान किया है, इसलिए वह जनता के इस विश्वास को ठेस नहीं लगने देंगे। इतना ही नहीं इस दौर में महाराष्ट्र प्रदेश अध्यक्ष राव साहेब दानवे व मुंबई भाजपा अध्यक्ष आशीष शेलार, पुणे के पालक मंत्री गिरीष बापट व मंत्री गिरीष महाजन की रणनीति भाजपा को राज्य में नंबर वन बनाने में काफी हद तक सहायक रही है।