अगर लड़की बालिग हैं तो उसे अपना जीवनसाथी चुनने का हक हैं : सुप्रीम कोर्ट
नई दिल्ली, 03 अक्टूबर : केरल के लव जिहाद के मामले में सुप्रीम कोर्ट ने अपने पहले के रुख में बदलाव करते हुए कहा है कि एक पिता अपनी 24 वर्षीया लड़की के व्यक्तिगत जीवन को डिक्टेट नहीं कर सकता है। लड़की बालिग है और उसे अपने फैसले लेने का हक है। चीफ जस्टिस दीपक मिश्रा ने केरल हाईकोर्ट द्वारा दोनों की शादी को शून्य करार देने पर सवाल खड़ा किया। कोर्ट ने कहा कि ये लव जिहाद है या नहीं ये सवाल नहीं है| सवाल है कि क्या हाईकोर्ट शादी शून्य कर सकती है और क्या सुप्रीम कोर्ट इस मामले पर एनआईए जांच का आदेश दे सकती थी। सुप्रीम कोर्ट ने एनआईए को नोटिस जारी कर 9 अक्टूबर तक जवाब देने का निर्देश दिया है। मामले की अगली सुनवाई 9 अक्टूबर को होगी ।
आज याचिकाकर्ता और लड़की के पति शफीन जहां के वकील दुष्यंत दवे ने सुप्रीम कोर्ट द्वारा इस मामले की जांच एनआईए द्वारा कराने के फैसले पर सवाल खड़े किए। उन्होंने कहा कि सुप्रीम कोर्ट ने अपने क्षेत्राधिकार का उल्लंघन किया है और उसे अपने पहले के फैसले को वापस लेना चाहिए। पिछले 16 सितंबर को याचिकाकर्ता शफीन जहां ने सुप्रीम कोर्ट में एनआईए जांच के आदेश को वापस लेने की मांग करते हुए याचिका दायर की थी। सुप्रीम कोर्ट ने पिछले 16 अगस्त को इस मामले की एनआईए जांच के आदेश दिए थे।
अपनी याचिका में शफीन ने सामाजिक कार्यकर्ता राहुल ईश्वर की एक वीडियो को साक्ष्य के तौर पर पेश किया है जो लड़की हदिया के घर पर फिल्माई गई है। राहुल ईश्वर सुप्रीम कोर्ट के फैसले के दूसरे दिन 17 अगस्त को हदिया के घर पहुंचे थे। उस वीडियो में हदिया ने पूछा कि क्या मैं नजरबंद करने के लायक हूं। क्या यही मेरी जिंदगी का मकसद है। उस वीडियो में हदिया ने अपने माता-पिता पर सारा दोष मढ़ा है।
याचिका में केरल मानवाधिकार आयोग के कार्यकारी अध्यक्ष पी मोहनदास के बयानों को भी आधार बनाया गया है। उन्होंने बयान दिया था कि हदिया को बंधक बनाए जाने की कई शिकायतें मिली हैं। हदिया को उसके घर पर मानवाधिकार उल्लंघन की शिकायतें मिली हैं। इसके साथ साथ केरल महिला आयोग के अध्यक्ष एमसी जोसफिन ने भी मानवाधिकार उल्लंघन की शिकायत संबंधी बयान दिया था।
याचिका में कहा गया है कि सुप्रीम कोर्ट ने सुप्रीम कोर्ट के रिटायर्ड जस्टिस आरवी रविंद्रन की देखरेख में जांच करने का आदेश दिया था। लेकिन जस्टिस रविंद्रन के देखरेख से इनकार करने के बावजूद एनआईए अपना काम कर रही है। जिससे साफ है कि उसकी जांच में पारदर्शिता नहीं है।
पिछले 16 अगस्त को सुप्रीम कोर्ट ने एनआईए को निर्देश दिया था कि वे सुप्रीम कोर्ट के रिटायर्ड जस्टिस आरवी रविंद्रन की देखरेख में जांच करें। लेकिन ऐसी खबरें हैं कि जस्टिस रविंद्रन ने ये काम लेने से मना कर दिया है । पिछले 10 अगस्त को सुप्रीम कोर्ट ने केरल पुलिस को निर्देश दिया था कि वो एनआईए से जांच की डिटेल साझा करें। इसके साथ ही कोर्ट ने एनआईए को इस मामले में सहयोग करने को कहा था। सुनवाई के दौरान याचिकाकर्ता शफी जहान ने कहा था कि हमने एनआईए को जांच के लिए नहीं कहा था हमने केवल उन्हें दस्तावेज को वेरिफाई करने को कहा था। तब कोर्ट ने कहा कि आप एनआईए पर शक कर रहे हैं। ये एक सरकारी एजेंसी है ये कोई बाहरी एजेंसी नहीं है। ये एक सिक्के की तरह हैं जिसमें एक पक्ष दूसरे को नहीं देखता। उस पर हम फैसला लेंगे। हम केवल ये जानना चाहते हैं कि इसमें कोई बड़ी साजिश है कि नहीं।
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पिछले 4 अगस्त को सुप्रीम कोर्ट ने केरल सरकार और एनआईए को नोटिस जारी किया था। सुप्रीम कोर्ट ने लड़की के पिता को सभी दस्तावेज कोर्ट में प्रस्तुत करने का निर्देश दिया था ।
पिछली सुनवाई के दौरान लड़का शफी जहान की ओर से कपिल सिब्बल और इंदिरा जय सिंह ने कहा था कि लड़की वयस्क है और उसे कोर्ट में पेश किया जाना चाहिए। उनकी इस दलील का लड़की के पिता की ओर से वकील माधवी दीवान ने विरोध किया कि इस बात के पुख्ता दस्तावेज हैं कि उसका अतिवादी संगठनों के प्रभाव में आकर धर्मपरिवर्तन कराया गया। शफी जहान की तरफ से कहा गया कि उसकी पत्नी ने अपनी मर्जी से अपना नाम बदलकर हदिया रखा था। उसने शादी करने के लिए इस्लाम धर्म कबूल नहीं किया था।
इस मामले में केरल हाईकोर्ट ने लड़की के पिता की याचिका पर सुनवाई करते हुए उनकी शादी निरस्त कर दी थी। लड़की के पिता ने आरोप लगाया था कि उसकी बेटी का जबरन धर्म परिवर्तन कर उसके साथ मुस्लिम लड़के ने शादी की थी।
केरल हाईकोर्ट के फैसले के खिलाफ याचिकाकर्ता शफी जहां ने अपनी पत्नी को अपने साथ रखने की मांग करते हुए याचिका दायर की थी। लड़की का नाम अकीला था जिसका इस्लाम में धर्म परिवर्तन के बाद हदिया हो गया। शफी केरल के कोल्लम जिले का रहनेवाला है जो मस्कट में नौकरी करता है। हदिया के पिता अशोकन एके कोट्टयम जिले के रहनेवाले हैं जिन्होंने केरल हाईकोर्ट में बंदी प्रत्यक्षीकरण याचिका दायर कर अपनी बेटी को पाने की मांग की थी। उन्होंने अपनी याचिका में कहा था कि उनकी बेटी को अनाधिकृत रुप से आरोपी ने अपने साथ रखा था। उनकी बेटी तमिलनाडु के सलेम में बीएचएमएस की पढ़ाई कर रही थी। वो वहां दो मुस्लिम बहनों के साथ किराये के घर में रहती थी जिन्होंने उसे इस्लाम धर्म में परिवर्तित कराया। अशोकन के मुताबिक उनकी बेटी ने एक मुस्लिम युवक से शादी कर ली थी और अब उसे आईएस से जुड़ने के लिए प्रेरित किया जा रहा था। अशोकन की याचिका पर सुनवाई करते हुए केरल हाईकोर्ट ने उनकी शादी शून्य घोषित करते हुए आईएस से जुड़ने के मामले की जांच का आदेश दिया था। (हि.स.)।